कोरोना की दूसरी लहर ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया, जिन्हें हम कभी वापस नहीं पा सकते। इसी क्रम में एमएसटीसी के उत्तरी क्षेत्रीय कार्यालय के तीन अधिकारियों को कोरोना की दूसरी लहर में हमने खो दिया। एमएसटीसी के विकास में उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है। एमएसटीसी के लिए उन्होंने जो योगदान दिया है। उसे हम किसी भी माध्यम से चुका नहीं सकते हैं। उनकी शालीनता, सृजनशीलता, समर्पण, दृढ़-निश्चय हमारे लिए सदा अनुकरणीय रहे हैं। एमएसटीसी उत्तरी क्षेत्रीय कार्यालय तीनों दिवंगत कार्मिकों के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है, जो निम्नवत हैं-
स्पष्ट तौर पर वे केवल हमारे कार्यालय के सदस्य नहीं थे, बल्कि मेरे लिए वे एक परिवार की तरह थे। कोरोना के दूसरी लहर में मैंने अपने परिवार के जिन तीन सदस्यों को खोया हैं। उसकी कल्पना भी करना मेरे लिए मुश्किल था, परन्तु जब एक-एक कर तीनों के जाने की खबर मुझे मिली, तो मैं स्तब्ध रह गया। मेरे लिए खुद को संभालना मुश्किल हो रहा था। हम एक परिवार की तरह कई वर्षों से एक साथ एक छत के नीचे लम्बा समय गुजर चुके थे। तीनों ही हमारे कार्यालय के कुशल, परिश्रमी, दृढ़ संकल्पी, और कार्य के प्रति समर्पित अधिकारी थे। कई विषम परिस्थितियों में मैंने उन्हें सक्षम पाया था। उनकी कार्य-कुशलता ने एमएसटीसी की सफलता, प्रगति और प्रतिष्ठा में चार चाँद लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। हमारे ह्रदय में तीनों अधिकारी के लिए हमेशा विशेष स्थान संरक्षित रहेगा।
बड़े प्यार से सुन रहा था जमाना, तुम्हीं सो गए दास्तां कहते-कहते।
नींद, गहरी नींद, जिससे तुम उठ न सके,
पर अपनी सुगंध, विद्वता समझदारी का उजाला सर्वत्र फैला गए।
आपका मुखर मौन, प्रासंगिक समझ
उचित समय पर उचित सुझाव देना ,
विलक्षण सुलझी हुई प्रतिभा,
अप्रतिम मार्गदर्शन का कार्य करती थी
कार्य कोई भी हो, कैसा भी हो,
विभागीय पत्राचार हो, किसी प्रोजेक्ट का शुभारंभ हो,
परस्पर वार्ता का कोई लिखित मसौदा हो ,
सभी पर आपका विहंगम दृष्टिपात अंतिम मुहर होता
और मान लिया जाता कि परिमल जी की सहमति/असहमति से
अधिक प्रामाणिक कुछ हो ही नहीं सकता ।
आज आप नहीं है
पर आपका व्यक्तित्व
हमारे मन में पूरी शिद्दत के साथ गड़ा है
इसे आप के विराट व्यक्तित्व का
प्रभाव ही कहा जा सकता है कि
आप हमारे मन में त्रिभंगी मूर्ति बनकर खड़े है।
हम जानते हैं कि आत्मा अमर है-
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, न दहंति पावकः,
न क्लेदयान्त आपों, न शेषयांति मारूतः”।
वह अजर अमर आत्म स्वरूप ब्रह्मलीन हो गया।
पर लौकिक रूप सदा-सदा के लिए
हमारे मन में इष्ट की तरह प्रतिष्ठित है।
हे देवरूप तुम्हें कोटिशः नमन।
जल की आर्द्रता, पुष्प की कोमलता, सुवास और सौंदर्य का मिश्रण,
प्रस्तर प्रतिभा सी समानुपातिक देहयष्टि
यानी आकर्षण की अद्भुत क्षमता से परिपूर्ण
आपका व्यक्तित्व सबको मोह लेता था।
तुम चले गए परंतु अपनी सुगंध से
संपूर्ण वातावरण को सुवासित कर गए।
अर्थव्यवस्था की बारीकियां आपकी कनिष्ठा पर विराजती,
ऐसी अनुपम मेधा का संसर्ग हमारे लिए भुलाना सरल नहीं है।
परम मित्र तुम व्यक्ति, वस्तु और समय के सच्चे पारखी थे।
विधि की विडंबना है कि ऐसा विलक्षण जौहरी समय से पूर्व चला गया।
नौका का खिवैया अपने निजी नौका को बीच मझधार में छोड़कर चला गया।
सच तो यह है कि तुमने जाने में बहुत जल्दी की।
विधाता के विधान में कुछ समय और लिखवा कर लाते
तो कितना अच्छा होता।
हमें तुमसे एक शिकायत भी है कि
तुम साथियों के प्यार, मनुहार, सेवा, श्रम-परिश्रम वगैरह
किसी भी भाव का भाव न रख सके
और अनंत यात्रा पर चले गए
पर इतना तो बताते कि हमारे मन से कैसे जा सकोगे।
“हाथ छुड़ा के जाते हो निबल जानके मोही
हृदय से जब जाओगे सबल जाएगी तोही”।
कर्तव्यनिष्ठ स्वभाव, समयबद्ध जीवनशैली,निर्द्वन्द-निर्लेप व्यक्तित्व के धनी श्री प्रेमचंद जी आप हमारे लिए एकाग्र मौन के धनी और समय के सच्चे पारखी थे। समय का सदुपयोग आपके व्यक्तित्व की पहचान थी। आपका जीवन जीने का अपना तरीका था। सीधे आना, सीधे-सीधे कार्य करना और अविलंब सीधे चले जाना परंतु अफसोस आपने तो महाप्रस्थान की राह भी शीघ्र और सीधी चुन ली। वस्तुतः आपका नाम ही आपको प्रेम के अद्वैत गहनता और चन्द्रमा की शीतलता से भर देता था। तभी तो आप कभी किसी से नाराज नहीं हुए। कार्यालय के कार्य को पूजा की तरह करते चले गए। किसी को भी शिकायत का मौका नहीं दिया। चंद्रमौली की तरह जीवन के विष को कंठ में धारण किए रहे और सबको अमृत पिलाते रहें। आपको हृदय से प्रेम और आनंद की स्मृतियों के पुष्प सदा समर्पित।
दुर्भाग्य से मुझे दिवंगत आत्माओं के साथ समय गुजारने का बहुत कम मौका मिला परन्तु जितना समय भी मुझे मिला मैंने पाया कि तीनों दिवंगत आत्माएं अपने क्षेत्र के दिग्गज अधिकारी थे। पूरी तन्मयता के साथ वे अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए कार्य को पूरा करते थे। उत्तर क्षेत्रीय कार्यालय के लिए तीनों दिवंगत आत्माओं का जाना एक ऐसी क्षति है जिसे एमएसटीसी कभी पूरा नहीं कर सकेगा। जगजीत सिंह के शब्दों में कहें तो - “चिट्ठी ना कोई सन्देश/जाने वो कौन सा देश/जहाँ तुम चले गए”।
वह लफ्ज कहाँ से लाऊ, जो आपके लिए कुछ लिख पाँऊ I
आप खो गये हो कही आसमान में हो चाँद-सितारों में I
बिन बादल आँख बरस रही ,साथ हो आप सदा यादो में I
ईश्वर के चरणों में स्थान मिले, याचना ये हमारी है I
आपको मोक्ष मिले बस यही प्रार्थना हमारी है I
साथ आपका यहीं तक था इसलिए छुट गया I
आपके जाने से जैसे हर मौसम हमसे रूठ गया I
हर कोई दुखी है,आज खोकर आपको I
हर आँख नम है,और हर दिल आज टूट गया I
हम तो कठपुतली है,उसके हाथों में हमारी डोर है I
जीवन और मृत्यु पर किसका यहाँ जोर है I
आपका जाना मगर चैन और सुकून सारा लुट गया I
हर आँख नम है, और हर दिल आज टूट गया I
रो पड़ती है , आँखे हमारी देख के तस्वीर आपकी ,
जिंदगी ऐसी जी गए की मौत भी शर्मा गई I
जिंदगी जी छोटी लेकिन सबसे अच्छी जी गए ,
हर जगह सुगंध फैलाकर स्मृति सबके दिल में रख गए I
प्रभु आप तीनों की दिव्य आत्मा को शांति प्रदान करें I
आज परिमल जी हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी यादें हमेशा हमें प्रेरित करती रहेंगी I वे अपने कर्म के प्रति बेहद समर्पित एवं ईमानदार थे I वे एमएसटीसी में एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनका कोई विरोधी नहीं थाI अपनी कविताओं एवं गीतों के माध्यम से वे हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे I
नीरज जी का कार्य हमेशा मशहूर रहेगाI वे अपने अनुभव से वित्त और लेखा विभाग में नये-नये प्रयोग करते रहते थे I
प्रेमचंद्र जी,काफी शान्त स्वभाव के व्यक्ति थे एवं अपने कार्य तथा कर्तव्य के प्रति निष्ठावान थे I
एमएसटीसी (एन आर ओ )की ओर से हम तीनों साथियों की आत्मा की शांति की कामना करते है एवं ईश्वर से प्रार्थना करते है कि उनके परिवार को इस मुश्किल घड़ी से उभरने की शक्ति दे I
परिमल जी काफी हंसमुख छवि वाले इंसान थे I उनकी आभा उनके ऊपर पूरा निखार ला देती थी I वह अंदर और बाहर से एक जैसे थे I मुस्कुराना उनकी आदत थी I उनके जैसे महान पुरुष बहुत कम होते हैंI उन्होंने कभी किसी से द्वेष, अहंकार, छल-कपट या किसी की बुराई कभी नहीं की थी I नीरज जी का एक अलग व्यक्तित्व था I स्वभाविक तौर पर वह एक मददगार व्यक्ति थे I प्रेम जी ने कभी किसी के लिए बुरा नहीं बोला, वह इन सब में नहीं रहते थे I वह अपने काम से काम रखते थे और अपने काम में मस्त रहते थे I ईश्वर,परिमल जी, नीरज जी और प्रेम जी की दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे एवं इनके परिवार को इस मुश्किल समय से बहार निकलने की हिम्मत दे I
Gone too soon
Dedicated to Parimal Sir
Dated 2-5-21
Grief will come over, not when you expect it:
Out of the blue, you would know, one day, you have felt it.
I’ll remember the metro rides, work meetings, poetry sessions,
Your tantrums, my rants, camaraderie and all the lessons.
Recollect the times when we used to poke fun:
Of situations, of people and at ourselves, all in one.
You were the best mentor and an even better friend,
I’ll promise to immortalise your work ethics till the end.
When I will think of workplace Holi and the compounding nuisance;
Sir, I’ll think of you, and your being MSTC’s common sense.
© एमएसटीसी लिमिटेड